भारतीय डाक अपनी परंरागत छवि से हट कर समाज के प्रति वचनबद्ध, प्रौद्योगिकी युक्त और दूरदर्शी संगठन के रूप में उभर रहा है। समूचे भारत में 1,55,015 डाक घरों का विशाल तंत्र फैला हुआ है, जिसमें से 1,39,144 ग्रामीण क्षेत्रों में हैं, जो विश्व भर में डाक घरों का सबसे बड़ा तंत्र है। डाक विभाग जिन स्थानों में डाक घर नहीं खोल पाया है, वहां की मांग को पूरी करने के लिए अब तक 850 डाक घरों की सेवाएं उपलब्ध कराई जा रही हैं। यह तंत्र न केवल सभी नागरिकों के लिए आवश्यक डाक सेवाएं उपलब्ध कराने का सामाजिक दायित्व निभा रहा है, बल्कि इन क्षेत्रों में आर्थिक गतिविधियों के लिए भी उत्प्रेरक का काम कर रहा है। कंप्यूटरों के प्रगतिशील इस्तेमाल और एक ही स्थान पर माध्यम से जुड़ने का तंत्र कायम करके डाक विभाग खुदरा उत्पादों और अन्य सेवाओं को भारतीय डाक से भेजने का एक एकीकृत माध्यम उपलब्ध कराता है। परिवर्तित डाक स्वरूप के रूप में उपभोक्ता से व्यापार तथा कारोबार से अन्य व्यापारिक स्थानों तक के वर्ग में डाक सेवा के विस्तार में पर्याप्त वृद्धि होती रही है। सेवाओं और सुविधाओं के मामले में सामान्य लोगों की आशाएं निरंतर बढ़ती जा रही हैं। सरकारें और निगमित क्षेत्रों ने आम लोगों तक पहुंचने के लिए भारतीय डाक के विशाल तंत्र और विश्वसनीयता का इस्तेमाल बढ़ाया है। डाक घरों के माध्यम से उपलब्ध कराई जाने वाली कुछ सेवाएं इस प्रकार हैं-राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी स्कीम। इसके अंतर्गत डाक विभाग के डाकखानों को बचत बैंक खाते के जरिए एनआरईजीएस के लाभार्थियों को वेतन की जिम्मेदारी दी गई है। इस प्रकार की सेवा 2006 में आंध्र प्रदेश डाक सर्किल से शुरू की गई है। इस समय एनआरईजीएस के अंतर्गत वेतन भुगतान 21 राज्यों के 19 डाक सर्किलों में लागू है। एक लाख डाक घरों के जरिए इस स्कीम का संचालन किया जा रहा है। मार्च 2011 (जुलाई 2011) से अब तक एनआरईजीएस के लगभग 4.9 करोड़ (5.04) खाते खोले जा चुके हैं और सिर्फ इस वित्तीय वर्ष के दौरान ही 7300 करोड़ रुपये वितरित किये जा चुके हैं। एसबीआई के साथ गठबंधन। इंडिया पोस्ट का भारतीय स्टेट बैंक के साथ समझौता हुआ है कि वह निर्धारित डाक घरों के माध्यम से अपनी आस्तियों और दाय उत्पादों की बिक्री करेगें। प्रारंभ में यह स्कीम पांच राज्यों में शुरू की गई थी, बाद में 23 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में भी शुरू कर दी गई। शुरू किये गये विभिन्न प्रकार के खातों की कुल संख्या 1.04 लाख और बिक्री की गई कुल आस्तियां 17 करोड़ रुपये तक पहुंच गईं है। नाबार्ड के साथ गठबंधन, सोने के सिक्कों की बिक्री, वृद्धावस्था पेंशन (वृद्धावस्था पेंशन का बिहार, दिल्ली, झारखंड और उत्तर-पूर्वी राज्यों में 20 लाख पोस्ट ऑफिस बचत खातों के माध्यम से तथा जम्मू-कश्मीर, कर्नाटक, हिमाचल प्रदेश, गुजरात, राजस्थान और तमिलनाडु में मनी ऑर्डर के जरिए भुगतान किया जा रहा है) आरटीआई आवेदनों की ऑनलाइन स्वीकृति- डाक विभाग, सूचना के अधिकार कानून के क्रियान्वयन में केंद्र सरकार के अधीन अन्य लोक प्राधिकारियों को सहायता दे रहा है। यह केंद्रीय सहायक जन सूचना अधिकारियों के जरिए सेवाएं प्रदान कर रहा है। तहसील स्तर के उप पोस्ट मास्टर बतौर केंद्रीय सहायक जन सूचना अधिकारी काम कर रहे हैं और आरटीआई अनुरोध एवं आवेदन स्वीकार कर रहे हैं। विभाग ने 4000 डाक घरों को आरटीआई आवेदन स्वीकार कर उसे लोक प्राधिकारियों तक पहुंचाने के लिए निर्दिष्ट किया है। इसके लिए एक आरटीआई सॉफ्टवेयर विकसित किया गया है। रेलवे टिकट आरक्षण- डाक घरों के माध्यम से वर्तमान में 170 जगहों से रेलवे के टिकट बेचे जा रहे हैं। इस योजना का विस्तार गांवों में भी किया जाएगा। रूरल प्राइस इंडेक्स डाटा कलेक्शन- सांख्यिकीय एवं कार्यक्रम क्रियान्वयन मंत्रालय ने अक्टूबर 2009 से देश के 1183 डाक घरों को रूरल प्राइस इंडेक्स तय करने के लिए आंकड़े इकठ्ठा करने की जिम्मेदारी सौंपी है। किसी निश्चित कार्य दिवस में डाक घर के पोस्ट मास्टर 185 से 292 वस्तुओं की कीमतें जुटाते हैं। संग्रह किए गए आंकडे इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से सांख्यिकीय एवं कार्यक्रम क्रियान्वयन मंत्रालय को प्रेषित किए जाते हैं। इस कार्य से डाक विभाग को 7 करोड 33 लाख रूपए की आय हुई। यूनिक आइडेंटीफिकेशन नंबर- डाक विभाग देश के सभी नागरिकों तक आधार नंबर वितरित कर इस मामले में पूर्ण समाधान उपलब्ध कराने का प्रयास कर रहा है। डाक घरों के विशाल नेटवर्क के साथ डाक विभाग ही एक मात्र ऐसा विभाग है जो यूनिक आइडेंटीफिकेशन नंबर से जुडे सभी समाधान उपलब्ध करा सकता है। डाक खुदरा सेवा- भारतीय डाक विभाग और फैब इंडिया ने उपभोक्ता को लाभांवित करने की भागीदारी की है, जो कि अपनी तरह की पहली सरकारी निजी भागीदारी है। फैब इंडिया के प्रमुख स्टोर पर अपना खुदरा काउंटर खोलने के साथ ही भारतीय डाक विभाग ने उपभोक्ताओं को परेशानी मुक्त खुदरा डाक सेवा उपलब्ध कराने का प्रस्ताव रखा है, जिससे देश ही नहीं बल्कि विदशों में भेजने के लिए भी उपभोक्ता को फैब इंडिया के उत्पाद खरीदकर उन्हें पैकिंग से लेकर डिस्पैच तक में सुविधा रहेगी। उपभोक्ताओं को सामान की बुकिंग के लिए दिल्ली पोस्टल सर्किल के डाक कर्मी फैब इंडिया के काउंटर पर ही सेवा देंगे। डाक विभाग ने सबसे पहले खुदरा सेवा जवाहर व्यापार भवन कॉटेज एंपोरियम, नई दिल्ली में शुरू की। इससे ग्राहक को शॉपिंग कांप्लेक्स में ही स्पीड पोस्ट और रजिस्टर्ड पार्सल बुकिंग जैसी सुविधाएं मिल जाती हैं। वीजा संबंधी सेवाएं- भारतीय डाक ने डाकघरों के माध्यम से विभिन्न देशों के लिए वीजा संबंधी सेवाएं प्रदान करने के उद्देश्य से मैसर्स वीएफएस ग्लोबल के साथ एक सहमति-पत्र पर हस्ताक्षर किया। कूलरों की बिक्री- भारतीय डाक ने तमिलनाडु में राज्य के सभी डाकघरों के माध्यम से थर्मो-इलैक्ट्रिक कूलर ‘चोटूकूल’ की बुकिंग के लिए मैसर्स गोदरेज एंड बोयेस मेन्युफैक्चरिंग कंपनी लिमिटेड के साथ समझौता किया है। भारतीय डाक की साझेदारी: 2012 और उसके बाद- ‘भारतीय डाक की साझेदारी: 2012 और उसके बाद’ के विषय पर चर्चा के लिए हाल में सभी हितधारकों का एक गोल मेज सम्मेलन आयोजित किया गया था। इससे डाक विभाग को भविष्य का व्यापार प्रारूप विकसित करने और भारतीय डाक 2012 परियोजना के प्रौद्योगिकीय ढांचे के साथ जोड़ने में मदद मिलेगी। इसी विशाल नेटवर्क के जरिए यह देश के हर नागरिक तक अपनी पहुंच रखता है। इसे ध्यान में रखते हुए भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण (यूआरइडीएआई) और डाक विभाग ने 30 अप्रैल 2010 को अपने पहले सहमति पत्र पर हस्ताक्षर किए। यह समझौता कोलकाता जीपीओ पर प्रिंट टू पोस्ट सुविधा उपलब्ध कराता है, जिसके अंतर्गत निवासी की सूचनाओं का संग्रह करने वाले यूआईडी आधार नंबर की छपाई होती है। बडे नेटवर्क के जरिए देश में प्राप्तकर्ता को शीघ्रता से उसका आधार नंबर पहुंचा दिया जाता है।
n August 2011, the
Supreme Court made an observation which had some unintended consequences
on the Right to Information (RTI) process. The judgement by Justice
R.V. Raveendran is turning out to be a seemingly legitimate excuse for
government officials to restrict information.
Aditya Bandopadhyay went to court when the Central Board of Secondary Education declined to provide his examination answer sheets under the RTI Act. While the court allowed access to answer sheets, it also observed that the cherished right to information should not affect administrative efficiency.
In his judgement, Justice R.V. Raveendran said: “The nation does not want a scenario where 75 percent of the staff of public authorities spends 75 percent of their time in collecting and furnishing information to applicants instead of discharging their regular duties. The threat of penalties under the RTI Act and the pressure of the authorities under the RTI Act should not lead to employees of public authorities prioritising information furnishing at the cost of their normal and regular duties.” Government officials are now using this excuse with increasing frequency saying that even the court agrees. Central Information Commissioner Shailesh Gandhi says 75 percent government staff spending 75 percent of their time on giving information would mean 56 percent (0.75 X 0.75) of their total time spent only on replying to RTI queries.
Gandhi says that at the
most optimistic estimate not more than one crore RTI applications are
likely to be received by all public authorities across the country in
2012. The average time to attend to each would be less than three hours.
That means no more than three crore hours spent by all officials. Aditya Bandopadhyay went to court when the Central Board of Secondary Education declined to provide his examination answer sheets under the RTI Act. While the court allowed access to answer sheets, it also observed that the cherished right to information should not affect administrative efficiency.
In his judgement, Justice R.V. Raveendran said: “The nation does not want a scenario where 75 percent of the staff of public authorities spends 75 percent of their time in collecting and furnishing information to applicants instead of discharging their regular duties. The threat of penalties under the RTI Act and the pressure of the authorities under the RTI Act should not lead to employees of public authorities prioritising information furnishing at the cost of their normal and regular duties.” Government officials are now using this excuse with increasing frequency saying that even the court agrees. Central Information Commissioner Shailesh Gandhi says 75 percent government staff spending 75 percent of their time on giving information would mean 56 percent (0.75 X 0.75) of their total time spent only on replying to RTI queries.
Assuming that an average government employee works for just six hours a day for 200 days a year, it would mean he would work for a total of 1,200 hours in a year. That means 25,000 (3 crore divided by 1,200) employees would be required full time. The Centre and all state governments have about 1.2 crore employees. So, the total time spent by government employees on replying to RTI queries would be 0.208 percent (25,000 divided by 12,000,000).
In other words, no more than 4.6 percent officials are spending 4.6 percent of their time on giving information. This is based on conservative assumptions. Surely, government officials work for more than six hours a day! Doesn’t look like they have much space to hide.