एक
साहसी तकनीकी अभियान के तहत भारत अपने लगभग एक अरब लोगों का निजी पहचान
बायोमेट्रिक डाटाबेस बना रहा है जिसमें सेंध लगाने की गुंजाइश न के बराबर
होगी। यह दुनिया भर में अपनी तरह की पहली कोशिश है।
जिन
गरीब भारतीयों के पास कोई पहचान पत्र नहीं है, उन्हें भी एक राष्ट्रीय
ऑनलाइन सिस्टम में दर्ज किया जा रहा है जिसके जरिए कहीं भी चंद सेकंडों के
भीतर उनकी पहचान की पुष्टि की जा सकेगी।
भारतीय
विशिष्ठ पहचान प्राधिकरण (यूआईडीएआई) को इस काम की जिम्मेदारी सौंपी गई
है। इस संस्था के प्रमुख नंदन नीलेकणी हैं जो सूचना तकनीक क्षेत्र के एक
दिग्गज रहे हैं।
वो
कहते हैं, 'भारत के पास दुनिया का सबसे बड़ा बायोमेट्रिक डाटाबेस होगा और
वो अमरीका के संघीय जांच ब्यूरो और यूस-विजिट वीजा कार्यक्रमों के डाटाबेस
को भी पीछे छोड़ देगा।'
क्रांतिकारी बदलाव : अमेरिका
के वीजा कार्यक्रम के पास 12 करोड़ लोगों का बायोमेट्रिक डाटाबेस है, जबकि
यूआईडीएआई दो साल से भी कम समय में 20 करोड़ लोगों का बायोमेट्रिक ब्यौरा
दर्ज कर चुका है।
ज्यादा
से ज्यादा भारतीय अपनी अंगुलियों के निशान दे रहे हैं। अपनी आंखें स्कैन
करवा रहे हैं और अपने फोटो खिंचा रहे हैं। इस डाटाबेस में 12 अरब अंगुलियों
के निशान, 2.4 अरब आंखों के स्कैन और 1.2 अरब फोटो होंगे।
एक
बार सभी नागरिकों का ब्योरा दर्ज हो जाने के बाद किसी भी व्यक्ति की पहचान
की पुष्टि मोबाइल फोन, स्मार्ट फोन, टेबलेट या इंटरनेट से जुड़े इस तरह के
किसी भी उपकरण पर की जा सकेगी। ये जानकारी बंगलौर में किलेनुमा डाटा सेंटर
में संरक्षित होती है जहां तीन स्तरों वाली सुरक्षा है।
बेहतरीन डाटाबेस : यूआईडी परियोजना को शुरू करने से पहले दुनिया के सभी बेहतरीन डाटाबेसों का अध्ययन किया गया।
अमेरिकी
डाटाबेस में सोशल सिक्योरिटी नंबर होता है जिसके बारे में अनुमान लगाया जा
सकता है, जबकि चीन में जन्मतिथि को जोड़ा जाता है, वहीं भारत में 12 अंकों
वाली विशिष्ठ पहचान संख्या बिना किसी निश्चित क्रम के (रैंडमली) उत्पन्न
होती है।
इस
परियोजना के लिए एप्लिकेशन तैयार करने वाली कंपनियों में से एक बंगलौर की
ऑउटसोर्सिंग कंपनी मिड-ट्री के सीईओ कृष्णकुमार नटराजन कहते हैं, '10
अंगुलियों के बायोमेट्रिक निशान, दो आंखों का स्कैन और फोटो से किसी
व्यक्ति की 99.5 प्रतिशत तक सटीक पहचान को स्थापित किया जा सकता है।'
दुनिया के इस बेहतरीन डाटाबेस में इस बात के भी पुख्ता इंतजाम किए गए हैं कि किसी का ब्योरा एक से ज्यादा बार दर्ज न हो।
यूआईडीएआई
के उप महानिदेशक अशोक दलवाई कहते हैं कि भारत जैसे देश में ये बहुत अहम है
जहां पिछले एक दशक में जनसंख्या का बड़ा हिस्सा काम की खातिर या अन्य
वजहों से एक जगह से दूसरी जगह पर गया है। इसके अलावा देश में 60 अरब डॉलर
की लागत वाली कल्याणकारी योजनाएं चल रही हैं।
असल चुनौती : इस
परियोजना की मुख्य चुनौती विशिष्ठ पहचान संख्या की सुविधाओं को अमल में
लाना होगा। इस डाटाबेस को परखने के लिए कई अभ्यास चल रहे हैं। बंगलौर के
पास तुमकुर में लोगों को नई विशिष्ठ पहचान संख्या दी गई हैं, इसके जरिए वे
इलेक्ट्रॉनिक तौर पर बैंक खाता खोल रहे हैं।
वहीं
झारखंड में सरकार रोजगार गारंटी योजना के तहत काम करने वालों के बैंक
खातों में सीधे इलेक्ट्रोनिक रूप से रकम भेज रही है। विशिष्ठ पहचान संख्या
मिलने के बाद ही ये बैंक खाते खोले गए।
भारतीयों
ने दुनिया की नामी आईटी कंपनियों के लिए अत्याधुनिक सॉफ्टवेयर तैयार किए
हैं, उन्हीं में से कुछ अब तकनीकी दुनिया से अंजान करोड़ों भारतीयों को एक
विशिष्ठ ऑनलाइन पहचान देने में जुटे हैं।
(लेखिका सरिता राय पत्रकार और विश्लेषक है जो भारत में हो रहे आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृति परिवर्तनों पर खास तौर से नजर रखती हैं।)
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